23 जनवरी 2011

ग़ज़ल

आइये भटकें ज़रा अनुभूतियों के बीच में.
सीप के मोती मिलेंगे सीपियों के बीच में.

कैद वाली कोठरी में, खूब रोशनदान हें.
सिर्फ़ दरवाज़ा नहीं है, भीतियों के बीच में.

रोज़ मरुथल की तपन के,आसमानी ख्वाब में.
एक बदली झांकती है,बिजलियों के बीच में.

सख्त पेड़ों से गुज़ारिश है, लचकना सीख लें.
नर्म टहनी ही बचेगी , आँधियों के बीच में.

ये समंदर पार वाले ,   सिर्फ़ बंजारे नहीं.
बांध लेंगे मन तुम्हारा, गठरियों के बीच में.

हर तरफ़ रंगीन खुशियाँ, बीच में मेरी घुटन.
एक बगुली आ खड़ी है, मछलियों के बीच में.

यूं हमारी ज़िंदगी है,ज़िंदगी में आप हैं .
रोशनी दिख जाए जैसे, झपकियों के बीच में.

चल रहे हैं शान से,आज़ाद हम,धागों बंधे.
कैद हें धागे किसी की उँगलियों के बीच में.

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